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________________ 266. महाव्रत-मूल पंच महव्वय सुव्वयमूलं । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1261] - प्रश्नव्याकरण 2827 यह ब्रह्मचर्यव्रत पंच महाव्रत रूप शोभन व्रतों का मूल है अर्थात् यह ब्रह्मचर्य महाव्रतों और अणुव्रतों का मूल है । 267. ब्रह्मचर्य समण मणाइल साहुसुचिण्णं । ___- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1261] - प्रश्नव्याकरण 29/27 ___यह ब्रह्मचर्य शुद्ध हृदयवाले साधु पुरुषों द्वारा आचरित है। 268. वैरनाशक औषध वेर विरमण पज्जवसाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1261] . - प्रश्नव्याकरण 28/27 यह ब्रह्मचर्य वैरभाव की निवृत्ति और उसका अन्त करनेवाला है। 269. सच्चा भिक्षु ! स एव भिक्खू जो सुद्धं चरति बंभचेरं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1262] - प्रश्नव्याकरण 29/27 जो शुद्ध भाव से ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वस्तुत: वही भिक्षु है । 270. ब्रह्मचर्य-गरिमा जेण सुद्ध चरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1262] - प्रश्नव्याकरण 227 - ब्रह्मचर्य के शुद्ध आचरण से ही उत्तम ब्राह्मण, उत्तम श्रमण और उत्तम साधु होता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 130
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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