SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 262. सुरनरपूजित, ब्रह्मचर्य देवरिंदणमंसिय पूर्य, सव्वजगुत्तममंगलमग्गं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1261] - प्रश्नव्याकरण 20/27 यह ब्रह्मचर्य देवेन्द्रों-नरेन्द्रों द्वारा पूजित है और नमस्कृत है तथा समस्त जगत् में उत्कृष्ट मंगल-मार्ग है । 263. ब्रह्मचर्य, अद्वितीय गुणनायक दुद्धरिसंगुणनाशकमेक्कं मोक्खपहस्सऽवडिंसगभूयं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1261] - प्रश्नव्याकरण 29/27 यह ब्रह्मचर्य दुर्द्धर्ष है अर्थात् इसको कोई पराजित नहीं कर सकता है । यह गुणों का अद्वितीय नायक है । ब्रह्मचर्य ही एक ऐसा साधन है जो आराधक को अन्य सभी सदगुणों की ओर प्रेरित करता है। 264. ब्रह्मचर्य, मुक्ति-द्वार सिद्धिविमाण अवंगुयदारं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1261] - प्रश्नव्याकरण 2027 और तो क्या ? यह ब्रह्मचर्य मुक्ति और स्वर्ग के द्वार भी खोल देता 265. ब्रह्मचर्य श्रेयस्कर तहेव इहलोइय पारलोइय जसे य कित्ती य । पच्चओ य तम्हा निहुएण बंभचेरं चरियव्वं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1261] . . - प्रश्नव्याकरण 29/27 ब्रह्मचर्य के प्रभाव से इस लोक-परलोक में यश-कीर्ति और विश्वास प्राप्त होता है, इसलिए निश्चल भाव से ब्रह्मचर्य का आचरण करना चाहिए। ___ अभिधान सजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 129
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy