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________________ योगबिन्दु 123 कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, अन्धे हैं, दु:खी हैं; विशेषतः रोगपीड़ित हैं, निर्धन हैं; और जिनके आजीविका का कोई सहारा नहीं है; ऐसे लोग भी निश्चय ही दान के अधिकारी हैं। 229. कर्णेन्द्रिय विराग एवं तितिक्षा कण्णसोक्खेहिं सहेहिं, पेमं नाभिनिवेसए । दारुणं कक्कसं फासं, कारण अहियासए * ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1093 दशवैकालिक 8/26 कानों को सुख देनेवाले मधुर शब्दों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए तथा दारुण और कर्कश स्पर्शो को शरीर से समभावपूर्वक सहन करना चाहिए। 230. पुद्गल - लक्षण सबंधयार- उज्जोओ पहा छायाऽऽतवेति वा । वण्ण-रस-गंध-फासा, पोग्गलाणां तु लक्खणं ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1097 | - उत्तराध्ययन 28/12 स्पर्श-ये शब्द, अंधकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गंध और पुद्गल के लक्षण हैं । 231. पौषधव्रत आहार-तणुसत्काराऽब्रह्मसावद्यकर्मणाम् । त्यागः पर्वचतुष्टयां तद् विदुः पौषधव्रतम् ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1133-1139] धर्मसंग्रह 1/37 आहार, शरीर-सत्कार, अब्रह्मचर्य और सावद्यकार्य - चारों पर्वतिथियों (अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा) में इन सबका त्याग करना पौषव्रत है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 120 - -
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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