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________________ 232. सामायिक का महत्त्व सामाइय-वयजुत्तो, जावमणे होइ नियमसंजुत्तो। छिन्नइ असुहं कम्म, सामाइय जत्तिया वारा ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1136] - आवश्यक नियुक्ति 800/2 चंचल मन को नियन्त्रण में रखते हुए जबतक सामायिक व्रत की अखण्ड धारा चालू रहती है, तबतक अशुभ कर्म बराबर क्षीण होते रहते 233. भाषा-विवेक तहेव फरुसा भासा, गुरु भूओवघाइणी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1143] - दशवकालिक 71 ____ जो भाषा कठोर और दूसरों को पीड़ा पहुँचानेवाली हो, वैसी भाषा न बोलें। 234. सत्य भी हेय सच्चा वि सा न वत्तव्वा, जओ पावस्स आगमो । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1143] - दशवैकालिक 741 ऐसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए जिससे पापागम (अनिष्ट) होता हो। 235. द्विविध-बंधन • दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा-पेज्जबंधे चेव, दोस बंधे चेव । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1165] - स्थानांग 2MA107 बन्धन के दो प्रकार हैं - प्रेम का बन्धन और द्वेष का बन्धन । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 121
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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