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- स्थानांग 4/A/A/359 कुछ व्यक्ति समुद्र तैरने का महान् संकल्प करते हैं और समुद्र तैरने जैसा ही महान कार्य भी करते हैं।
कुछ व्यक्ति छोटा काम करते हुए भी महान् काम करने का संकल्प नहीं करते हैं और समुद्र तैरने जैसा महान् काम भी नहीं करते हैं । 217. कुम्भवत् पुरुष
महुकुंभे नामं एगे महुप्पिहाणे, महुकुंभे णामं एगे विसप्पिहाणे, विस कुंभे णामं एगे महुप्पिहाणे, विसकुंभे णामं एगे विसप्पिहाणे । एवामेव चत्तारि पुरिस जाता पन्नता ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1033]
- स्थानांग 4/AA/360 [4] चार तरह के घड़े होते हैं । यथामधु का घड़ा, मधु का ढक्कन । माधु का घड़ा, विष का ढक्कन । विष का घड़ा, मधु का ढक्कन । विष का घड़ा, विष का ढक्कन । इसीप्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं।
(मानव पक्ष में हृदय घट है और वचन ढक्कन) 218. मधु-कलश
हिययमपावमकलुसं, जीहा वियं मधुरभासिणी निच्चं । जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से मधुकुंभे महुपिहाणे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1033]
- स्थानांग 4/AA/360 [26 ] जिसका अन्तर्हृदय निष्पाप और निर्मल है, साथ ही वाणी भी मधुर है; वह मनुष्य मधु के घड़े पर मधु के ढक्कन के समान है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 116