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श्रमण चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ सिंह की तरह संयम लेते हैं और सिंह की तरह ही पालते हैं। २. कुछ सिंह की तरह संयम लेते हैं और सियाल की तरह पालते हैं । ३. कुछ सियाल की तरह संयम लेते हैं और सिंह की तरह पालते हैं ४. और कुछ ऐसे भी होते हैं जो सियाल की तरह संयम लेते हैं और सियाल की तरह ही पालते हैं ।
215. मेघवत् दानी
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1029]
स्थानांग 4/4/3/329
गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्ता विवासित्तावि, एगेणो गज्जिता णो वासित्ता, एवामेव चत्तारि पुरिस जाता पन्नत्ता ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1030] स्थानांग 4/4/4/346 [4]
मेघ की तरह दानी भी चारप्रकार के होते हैंकुछ बोलते हैं, देते नहीं । कुछ देते हैं, किंतु कभी बोलते नहीं । कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं, न देते हैं ।
216. संकल्प - विकल्प
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समुहं तरामी तेगे समुहं तरति, समुद्दं तरामी तेगे गोप्पतं तरति । गोप्पतं तरामी तेगे, समुहं तरति, गोप्पतं तरामी तेगे, गोप्पतं तरति ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1032 ]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 115