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- पिण्डनियुक्ति गाथा - 100 'ज्ञान और चारित्र का मूल भिक्षाशुद्धि है', ऐसा जिनेश्वरोंने कहा
पणा
181. चारित्र-शुद्धि से मोक्षप्राप्ति
चारित्तंमि असंतंमि निव्वाणं न उ गच्छइ । निव्वाणम्मि असंतंमि सव्वा दिक्खा निरत्थगा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 928)
- पिण्डनियुक्ति गाथा 102 जिनमें चारित्र नहीं हैं, वे मुक्ति में नहीं जाते हैं (अर्थात् चारित्रशुद्धि से मोक्ष-प्राप्ति सम्भव है ।) और मुक्ति के अभाव में उनकी संपूर्ण दीक्षा निरर्थक है। 182. प्रणीत पदार्थ-त्याग पणीअं वज्जए रसं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 931]
- दशवैकालिक 5/2/42 बुद्धिमान् स्निग्ध रसयुक्त पदार्थों का त्याग करें। 183. तपश्चरण तवं कुव्वइ मेहावी।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 931]
- दशवैकालिक 52/42 मेधावी तपश्चरण करता है। 184. जीवन-दान
यो दद्यात् काञ्चनं मेरुं, कृत्स्नां चैव वसुन्धराम् । एकस्य जीवितं दद्यान्न च तुल्यं युधिष्ठिर ! ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 936] - कल्पसुबोधिका टीका 218
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 103
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