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____ एक मनुष्य मेरुपर्वत के बराबर स्वर्ण किसी को दान में दें और एक व्यक्ति संपूर्ण पृथ्वी का दान दें तथा एक मनुष्य किसी भी प्राणी को अभयदान दें, तो भी प्रथम के दोनों दानी अभयदान देनेवाले के समक्ष हीन हैं; क्योंकि इस संसार में अहिंसा के समान कुछ भी नहीं है। 185. पैशुन्य-परिणाम पीई सुन्नति पिसुणो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 939
- निशीथ भाष्य 6212 . जो प्रीति से शून्य करता है, वह पैशुन्य (चुगली) है और वह प्रेम- . स्नेह को समाप्त कर देता है।
186. पुंडरीक कमल
अहवा वि नाण दंसण चरित्त विणए तहेव अज्झप्पे । जे पवरा होति मुणी, ते पवरा पुंडरीया उ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 944] .
- सूत्रकृतांग नियुक्ति 156 जो साधक अध्यात्मभाव रूप ज्ञान, दर्शन, चारित्र और विनय में श्रेष्ठ हैं, वे ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ पुंडरीक कमल हैं। 187. भवितव्यता
प्राप्तव्यो नियतिबलाऽऽश्रयेण योऽर्थः, सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि प्रयत्ने, ना भाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 953] - सूत्रकृतांग 24 सटीक
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 104