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149. कष्ट सहिष्णु
अणिहे से पुट्ठोऽधियासए ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 647] सूत्रकृतांग 12113
आत्मविद साधक को नि:स्पृह होकर आनेवाले कष्टों को सहन
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करना चाहिए ।
150. देह - कृश
धुणिया कुलियं व लेववं, कसए देहमणासणादिहिं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 647]
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सूत्रकृतांग 1214
जैसे लीपी हुई दीवार गिराकर पतली कर दी जाती है, वैसे ही अनशन आदि तपश्चरण के द्वारा देह को कृश करो ।
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151. समाधिकामी सहिष्णु
अरतिं रतिं च अभिभूय भिक्खू, तणाइफासं तह सीतफासं । उन्हं च दंसं च हियासएज्जा, सुब्भि च दुब्भि च तितिक्खएज्जा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 647] सूत्रकृतांग 1/10/14
समाधिकामी मुनि संयम में अरति ( खेद) और असंयम में रति (रूचि) को जीतकर तृणादि स्पर्श, शीतस्पर्श, उष्णस्पर्श और दंशमसक स्पर्श को समभाव से सहन करे तथा सुगन्ध - दुर्गन्ध को भी सहन करे । 152. चार्वाक दर्शन - मान्यता
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HONOR
पिब ! खाद च चारुलोचने, यदतीते वरगात्रि ! तन्नते । नहि भीरु ! गतं निवर्तते, समुदयमात्रमिदं हि कलेवरम् ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 647]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-595