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145. कामेच्छु क्या न करें ?
कामी कामे ण काम, लद्धे वावि अलद्ध कण्हुई । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 646]
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सूत्रकृतांग 1/2/3/6
कामी काम-भोगों की कामना न करे, प्राप्त भोगों को भी अप्राप्तवत्
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कर दे अर्थात् उपलब्ध भोगों के प्रति भी नि:स्पृह रहें ।
146. आत्मानुशासन
मा पच्छ असाहुया भवे, अच्चे ही अणुसास अप्पगं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 646] सूत्रकृतांग 123/7
आगे तुम्हें दु:ख न भोगना पड़े, अत: अभी से अपने आपको
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विषय-वासना से दूर रखकर अनुशासित करो । 147. अज्ञ, अभिमानी
बालणे पगब्भती ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 646] सूत्रकृतांग 1/2/3/10
अज्ञ अभिमान करते हैं ।
148. परिषह सहिष्णु
णविता अहमेवलुप्पए, लुप्पंती लोगंसि पाणिणो । एवं सहिएऽधिपासते, अणि पुट्ठोऽधियास ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 647] सूत्रकृतांग 12A13
कष्ट तथा आपत्ति के आने पर ज्ञान - सम्पन्न पुरुष खेद रहित मन से इसप्रकार विचार करें कि कष्टों से केवल मैं ही पीड़ित नहीं हूँ, किंतु संसार में दूसरे भी इनसे पीड़ित हैं । अतः जो कष्ट आए हैं; उन्हें संयमी साधक समभावपूर्वक सहन करें ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 94