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________________ षड्दर्शनसमुच्चय - 82 हे सुनयने ! खाओ और पीओ । जो चला गया वह लौटकर कभी नहीं आता, इसलिए अतीत अपना नहीं है । सिर्फ वर्तमान मात्र अपना है । वर्तमान में आनंद से रहो । यह शरीर तो मात्र पाँच भूतों का समुदाय है। जब समुदाय बिखर जाएगा तो सब कुछ यहीं समाप्त हो जाएगा । 153. मूढ़, विषादानुभव तत्थ मंदा विसीयंति मच्छा पविट्ठा व केयणे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 647] सूत्रकृतांग 1/31/13 जैसे जाल में फंसी हुई मछलियाँ तड़फती हैं, विषाद का अनुभव करती हैं, वैसे ही मूर्ख साधक भी मुनिधर्म में विषाद का अनुभव करते हैं, क्लेश पाते हैं । 154. त्रिविध - पर्षदा - सा समासओ तिविहा पणत्ता । तं जहा जाणिया अजाणिया दुव्विअडा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 648] बृहत्कल्पवृत्ति सभाष्य 1/3 सभा (पर्षदा) तीन प्रकार की होती है - ज्ञा (जाननेवाली), अज्ञा ― - (नहीं जाननेवाली) और दुर्विदग्धा । 155. कायर पलायनवादी aasaaraा हिं । 156. स्मृति - सूत्रकृतांग 13A17 परिषहों से विवश होकर वे ही संयम छोड़कर घर चले जाते हैं जो - असमर्थ हैं, कायर हैं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 648] नातीणं सरती बाले, इत्थी वा कुद्धगामिणी । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 96
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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