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91. हजार गोदान से संयम श्रेष्ठ
जो सहस्सं सहस्साणं मासे मासे गवं दए । तस्सावि संजमो सेओ अदितस्सवि किंचणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1816 ]
- उत्तराध्ययन 9/40 प्रतिमाह दस-दस लाख गायों का दान देनेवाले से कुछ भी नहीं देनेवाले संयमी का संयम श्रेष्ठ है । 92. चरित्रवान् साधक अनुपम
मासे मासे तु जो बालो कुसग्गेण तु भुंजए । न सो सक्खाय धम्मस्स कलं अग्घइ सोलसिं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1816 ]
- उत्तराध्ययन 9/14 जो बाल (अविवेकी) मास-मास की तपश्चर्या के अनन्तर कुश की नोक पर टिके उतना सा आहार करता है, फिर भी वह सुआख्यात धर्म (सम्यक्-चारित्र सम्पन्न मुनिधन) की सोलहवीं कला को भी नहीं पा सकता। 93. तृष्णाः सुरसा का मुँह
सुवण्ण-रूप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणंतिया ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1817]
- उत्तराध्ययन 9/48 कदाचित् सोने और चाँदी के कैलाश के समान विशाल असंख्य पर्वत हो जाएँ तो भी लोभी मनुष्य की तृप्ति के लिए वे अपर्याप्त ही हैं; क्योंकि इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 80