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94. कबहु धापे नाय
पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सह । पडिपुण्णं नालमेगस्स, इह विज्जा तवं चरे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1817]
. - उत्तराध्ययन 9/49
चावल, जौ आदि धान्य, समस्त सुवर्ण तथा पशुओं से परिपूर्ण समग्र पृथ्वी भी लोभी मनुष्य को तृप्त कर सकने में असमर्थ है । यह जानकर तपश्चरण-इच्छा-निरोध करना चाहिए। 95. इच्छा, अनन्त इच्छा हु आगाससमा अणंतिया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1817]
- उत्तराध्ययन 9/48 इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त हैं। 96. काम-कण्टक सल्लं कामा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1818]
- उत्तराध्ययन 9/33 काम-भोग शल्य है। 97. कषाय-परिणाम अहे वयइ कोहेणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1818]
- उत्तराध्ययन 954 आत्मा क्रोध से नीचे गिरती है। 98. काम-परिणाम
कामे पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गइं । __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1818]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 81