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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2764] - आचारांग - 1/6/4/ . तू जिनाज्ञा का अतिक्रमण कर धर्म की उपेक्षा कर रहा है। 459. मेधावी मेधावी जाणेज्जा धम्मं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2764/ - आचारांग - 1/6An91 बुद्धिमान् पुरुष अपने धर्म को भलीभाँति जाने-पहचाने । 460. कायरजन वसट्टा कायरा जणा लूसगा भवन्ति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2764 - आचारांग 1AM93 विषय वशवर्ती कायर जन व्रतों के विध्वंसक हो जाते हैं। 461. अज्ञ द्वारा निन्दनीय बाल वयणिज्जा हु ते णरा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2764] - आचारांग - 1/6/A191 संयम-भ्रष्ट पुरुष साधारणजनों (अज्ञजनों) के द्वारा भी निन्दनीय हो जाते हैं। 462. विषयाक्रान्त गंथेहिं गढिता णरा विसण्णा कामक्कंता । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2766) - आचारांग1/6/6498 .. धन-धान्यादि वस्तुओं में आसक्त और विषयों में निमग्न मनुष्य काम से आक्रान्त होते हैं। 463. आसक्ति तम्हा संगं ति पासहा । अभिधान राजेन्द्र कोप में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 172
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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