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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2766] आचारांग - 1/6/5/198
विषय - कषाय को शान्त करने के लिए तुम आसक्ति को देखो ।
464. संग्राम - शीर्ष
कायस्स वियावाए एस संगाम सीसे
वियाहिए से हु पारंगमे मुणी ।
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आचारांग - 1/6/5/198
शरीर के व्यापात को अर्थात् मृत्यु समय की पीड़ा को ही संग्रामशीर्ष (युद्ध का अग्रिम मोर्चा) कहा गया है, जो मुनि उसमें समाधि मरण प्राप्त कर विजयी होता है अर्थात् हार नहीं खाता है, वही संसार का पारगामी होता है ।
465. सच्चा साधक
से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2766] आचारांग वह सत्यार्थी साधक, क्रोध, मान, माया और लोभ का शीघ्र ही
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त्याग कर देता हैं ।
466. संयमलीन
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2766]
अबहिल्लेसे परिव्वए ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2766] आचारांग - 1/6/5/197
• संयम में लीनं मुनि अशुभ अध्यवसायों को छोड़कर विचरण करें ।
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467. दृष्टिमान् साधक
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संखाय पेसलं धम्मं दिट्टिमं परिणिव्वुडे ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2766] आचारांग - 1/6/5/197
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 173