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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1986]
- भगवद्गीता - 4/33 हे पार्थ ! सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में शेष होते हैं अर्थात् ज्ञान उनकी पराकाष्ठा है। 139. कर्म से बन्धन, ज्ञान से मुक्ति कर्मणा बध्यते जन्तु-विद्यया तु प्रमुच्यते ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1986]
- महाभारत शांतिपर्व - 2407 जीव कर्म से बँधता है और ज्ञान से मुक्त होता है। 140. एकान्त क्या ? नाणं किरियारहियं, किरियामित्तं च दो वि एगंता ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1988 ]
- सन्मतितर्क - 3/68 क्रियाशून्य ज्ञान और ज्ञानशून्य क्रिया-दोनों ही एकान्त है। 141. ज्ञान-क्रिया से भवपार
दोहिं ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अणाइयं अणवदग्गं । दीहमद्धं वा चाउरंतसंसार कंतारं वीइवएज्जा । तं जहा-विज्जाए चेव, चरणेण चेव ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1988]
- स्थानांग। वाणा जीव दो स्थानों से संसार रूपी अटवी को पार करता है-विद्या (ज्ञान) और चारित्र से। 142. ज्ञान-क्रिया से सिद्धि
संजोग सिद्धीइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ । अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 92