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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1988 ] .
एवं [भाग 6 पृ. 443]
- आवश्यक नियुक्ति 102 उपोद्घात संयोग-सिद्धि (ज्ञान-क्रिया का संयोग) ही फलदायी होती है। एक पहिए से कभी रथ नहीं चलता । जैसे अन्धा और पंगु मिलकर वन के दावानल से पार होकर नगर में सुरक्षित पहुँच गए, वैसे ही साधक भी ज्ञान
और क्रिया के समन्वय से ही मुक्ति प्राप्त करते हैं। 143. ज्ञान अपर्याप्त न नाण मित्तेण कज्ज निफ्फत्ती ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1989]
- आवश्यक नियुक्ति - 34157 मात्र ज्ञान प्राप्त कर लेने से ही कार्य की सिद्धि नहीं हो जाती । 144. आचरण महत्त्वपूर्ण
अणंतोऽवि य तरिडं, काइयं जोगं न जुंजइ नईए । सो वुज्झइ सोएणं, एवं नाणी चरणहीणो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1990]
- आवश्यक नियुक्ति 34160 .. तैरना जानते हुए भी यदि कोई जलप्रवाह में कूदकर कायचेष्टा न करे, हाथ-पाँव हिलाए नहीं, तो वह प्रवाह में डूब जाता है। धर्म को जानते हुए भी यदि कोई उसपर आचरण न करे तो वह संसार-सागर को कैसे तैर • सकेंगा ? 145. ज्ञान-सम्पन्न
नाणसंपन्नेणं जीवे चाउरते संसारे कंतारे ण विणस्सइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1993]
- उत्तराध्ययन - 29/60 ज्ञान से सम्पन्न जीव चतुर्गति रूप संसार-अटवी में नहीं भटकता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4.93
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