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सम्यग्दर्शी आसक्ति तथा स्नेह को दूर करे । 144. कर्मपीड़ित जीव पच्चमाणस्स कम्मेहि, नालं दुक्खाओ मोअणे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- - उत्तराध्ययन 6/6 कर्मों से पीड़ित प्राणी को दु:खों से छुड़ाने में कोई भी समर्थ नहीं
145. भय-वैर से दूर भय-वेराओ उवरए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- उत्तराध्ययन 6/6 भय और वैर से दूर रहो। 146. अचौर्य नाइएज्ज तणामवि।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- उत्तराध्ययन 67 बिना आज्ञा के किसी का तृण मात्र भी नहीं लेवे । 147. आचरण जीवन में अपनाओ आयरियं विदित्ताणं, सव्वदुक्खा विमुच्चई ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- उत्तराध्ययन 68 कुछ लोगों की मान्यता है कि आचार को जानने मात्र से ही मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो सकता है। 148. अज्ञानी-दुःखी
जे केइ सरीरे सत्ता, वन्ने रूवे य सव्वसो । मणसा काय वक्केणं, सव्वे ते दुक्ख संभवा ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 91