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विवेकी पुरुष सोचे - माता-पिता, पुत्रवधु, भाई, भार्या तथा सुपुत्र इनमें से कोई भी अपने कर्मों से दु:ख पाते हुए मेरी रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं। 140. अहिंसा-पालन न हणे पाणिणो पाणे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ 751]
- उत्तराध्ययन 6/6 किसी भी जीव की हिंसा नहीं करें । 141. न भाषा न पांडित्यं न चित्ता तायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं ?
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- उत्तराध्ययन 600 विभिन्न भाषाओं का पांडित्य मनुष्य को दुर्गति से नहीं बचा सकता, तो भला विद्याओं का अनुशासन (अध्ययन) किसीको कहाँ से बचा सकेगा ? 142. वचनवीर
भणंता अकरेन्ता य, बंध मोक्ख पइन्निणो। . वाया वीरिय मेत्तेणं, समासासेन्ति अप्पयं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- उत्तराध्ययन 60 जो सिर्फ बातें करते हैं, करते कुछ नहीं, वे बन्धन और मुक्ति की बातें करनेवाले दार्शनिक वाणी के बल पर ही अपने आपको आश्वस्त किए रहते हैं। 143. सम्यग्दर्शी छिंद गिद्धि सिणेहं च ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3. पू. 751]
- उत्तराध्ययन 6/4 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 90