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________________ 135. अज्ञानी दुःख भाजन जावन्ति विज्जा पुरिसा, सव्वे ते दुक्ख सम्भवा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 750] G उत्तराध्ययन 61 जितने भी अज्ञानी पुरुष हैं, वे सब दुःख के पात्र हैं । - 136. सत्यान्वेषण अप्पणा सच्चेमेसिज्जा । 137. मित्रता - अपनी आत्मा के द्वारा सत्य का अनुसंधान करो । मेत्ति भूएस कप्पए । - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 750] उत्तराध्ययन 6/2 उत्तराध्ययन 6/2 सभी जीवों पर मैत्री भाव रखो । 138. जन्म-मरण चक्र श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 750] लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अनंतए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 750] उत्तराध्ययन 61 मूर्ख प्राणी इस अनंत संसार में बार-बार लुप्त होते रहते हैं अर्थात् - जन्म-मरण करते रहते हैं । 139. अशरण भावना - माया पियाण्डुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाय, लुप्पन्तस्स सकम्पुणा ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 750] उत्तराध्ययन 6/3 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 89
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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