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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 703] - सूत्रकृतांग 12309 जो क्षण वर्तमान में उपस्थित है, वही महत्त्वपूर्ण है; उसे जानना चाहिए अर्थात् सफल बनाना चाहिए। 131. सम्यक्त्व-दुर्लभ णो सुलभं बोहिं च आहितं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 703] - सूत्रकृतांग 12/319 सम्यग्ज्ञान-दर्शन रूप बोधि का मिलना सुलभ नहीं है । 132. क्षमापना खमावणायाए णं पल्हायण भावं जणयइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 715] - उत्तराध्ययन 2949 अपराध की क्षमा मांगने से चित्त आल्हादित होता है अर्थात् क्षमापना से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है । 133. अल्पतुष्ट थोवं लद्धं न खिसए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 739] एवं [भाग 5 पृ. 1608 - आचारांग 12/4/85 थोड़ा मिलने पर झुंझलाए नहीं । 134. क्षुधा सहिष्णु हविज्ज उयरे दंते । ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 739] - दशवैकालिक 8/29 श्रमण भूख का दमन करनेवाला होता है । थोड़ा आहार मिलने पर भी वह कभी क्रोध नहीं करता। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 88
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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