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________________ 126. श्रमण, रागद्वेष रहित अविहम्ममाणे फलगावतट्ठी, समागमं कंखति अंतगस्स । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पू. 613] .. - सूत्रकृतांग 11/30 हनन किया जाता हुआ मुनि छिली जाती हुई लकड़ी की भाँति राग द्वेष रहित होता है । वह शान्त भाव से मृत्यु की प्रतीक्षा करता है । 127. इन्द्रिय-दमन संगाम सीसेव परं दमेज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 613] . - सूत्रकृतांग 10/29 जैसे योद्धा संग्राम के शीर्ष-मोर्चे पर ड्य रहकर शत्रु-योद्धा का दमन करता है वैसे ही कर्म-शत्रुओं के साथ युद्ध में डटे रहकर उनका दमन करो। 128. क्रोधजित् कोहं विजएणं खंतिं जणयइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 686] - उत्तराध्ययन 29/69 क्रोध को जीतने से जीव को क्षमा गुण की प्राप्ति होती है । 129. क्षमा-फल खंतीएणं परीसहे जिणइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 692] - उत्तराध्ययन 29/48 क्षमा करने से जीव परिषहों को जीत लेता है । 130. वर्तमान महान् इणमेव रवणं वियाणिया । ___ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3.87
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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