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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- उत्तराध्ययन 6ml जो अज्ञानी शरीर में, वर्ण में, रूप-लावण्य में, मन-वचन-काया से आसक्त हैं, वे सभी अपने लिए दु:ख उत्पन्न करते हैं । 149. बंध-मोक्ष-हेतु मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 751]
- ब्रह्मबिन्दूपनिषद-२ बंध और मुक्ति का कारण मानव-मन ही है । 150. शरीर रक्षा क्यों ? पुव्वकम्मरवयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे।।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 752]
- उत्तराध्ययन 603 पूर्वकृत कर्मों को नष्ट करने के लिए इस देह की सार-संभाल रखनी चाहिए। 151. संग्रह निरपेक्ष पक्खी पत्तं समादाया, निरवेक्खो परिव्वए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 752]
- उत्तराध्ययन 615 संयमी मुनि पक्षी की भाँति कल की अपेक्षा न रखता हुआ पात्र लेकर भिक्षा के लिए परिभ्रमण करें। 152. असंग्रही मुनि संनिहिं च न कुव्वेज्जा, लेवमायाए संजए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 752]
- उत्तराध्ययन 6/15 संयमी मुनि लेप लगे उतना भी संग्रह न करे, बासी न रखे।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 92