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________________ 153. अप्रमत्त अप्पमत्तो परिव्वए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 752] - उत्तराध्ययन 602 अप्रमत्त होकर विचरण करे । 154. उर्ध्वलक्ष्य बहिया उड्ढमादाया नावकंखे कयाइवि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 752] - उत्तराध्ययन 603 महत्त्वाकांक्षी उच्च स्थिति प्राप्त करके फिर कभी भी भोगों की आकांक्षा नहीं करे। 155. मिताहारी साधक मायन्ने असण-पाणस्स । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 755] - उत्तराध्ययन 23 साधक को खाने-पीने की मात्रा - मर्यादा का ज्ञाता होना चाहिए। 156. अदीनता अदीण मणसो चरे। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 755] उत्तराध्ययन 25 संसार में अदीनभाव से रहना चाहिए। 157. अर्थमहत्ता अत्थेण य वंजिज्जइ, सुतं तम्हा उ सो बलवं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 767] व्यवहारभाष्य पीठिका 4101 सूत्र (मूल शब्दपाठ), अर्थ (व्याख्या) से ही व्यक्त होता है; अत: अर्थ सूत्र से भी बलवान् (महत्त्वपूर्ण) है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 93
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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