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________________ 158. जितने नय, उतने मत जावइया नयवाया, तावइया चेव होंति परसमया । जावइया परसमया, तावइया चेव मिच्छत्ता ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 794] - सन्मति तर्क 3/47 जितने भी नयवाद हैं, संसार में उतने ही परसमय हैं, अर्थात् मतमतान्तर हैं और जितने ही परसमय - मतमतान्तर हैं; उतने ही मिथ्यादृष्टि 159. उपयोगिता सीहं पालेइ गुहा, अवि हाडं तेण सा महिड्ढीया । तस्स पुण जोव्वणम्मी, पओअणं किं गिरि गुहाए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 804] - बृहदावश्यक भाष्य 2114 गुफा बचपन में सिंह-शिशु की रक्षा करती है, अत: तभी तक उसकी उपयोगिता है । जब सिंह तरुण हो गया तो फिर उसके लिए गुफा का क्या प्रयोजन है ? 160. जयति शासनम् रज्जं विलुत्त सारं, जह जह गच्छो वि निस्सारो । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 806] - बृहदावश्यक भाष्य 937जैसे राजा के द्वारा ठीक तरह से देखभाल किए बिना राज्य-ऐश्वर्य हीन हो जाता है, वैसे ही आचार्य के द्वारा ठीक तरह से संभाल किए बिना संघ भी श्री हीन हो जाता है। 161. देश कालज्ञ ! सुह साहगं पि कज्जं, करण विहूण गणुवाय संजुत्तं । अन्नाय देसकाले, विवत्तिमुव जाति सेहस्स ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 807] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 94
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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