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________________ 104. अकर्म से कर्म-क्षय अकम्मुणा कम्म खवेंति धीरा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 557] - सूत्रकृतांग 10245 धीर पुरुष अकर्म (पापानुष्ठान के निरोध) से कर्म का क्षय कर देते itic 105. विषयासक्त दुःखी विसन्ना विसयं गणाहि, दुहतो विलोयं अणुसंचरंति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 557] - सत्रकतांग 1204 विषयासक्त आत्माएँ विषयों के कारण से दोनों ही लोक में विविध तरीके से दु:खी होती हैं। 106. तत्त्वदर्शी ते आततो पासति सव्वलोए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 558] - सूत्रकृतांग 1218 तत्त्वदर्शी समग्र प्राणी जगत् को अपनी आत्मा के समान देखता है। 107. ज्ञानी आत्मा अलमप्पणो होति अलं परेसि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 558] - सूत्रकृतांग 1219 ज्ञानी आत्मा ही 'स्व' और 'पर' के कल्याण में समर्थ होता है। 108. भवान्तकर्ता बुद्धा हुते अंतकडा भवंति । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 82
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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