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99. ज्ञानपूर्वक आचरण पढमं नाणं तओ दया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 556]
- दशवैकालिक 4/33 पहले ज्ञान फिर तदनुसार दया अर्थात् आचरण । 100. अज्ञानी अन्नाणी किं काही ? किं वा नाहिइ छेय पावगं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 556]
- दशवकालिक 433 अज्ञानी आत्मा क्या करेगा ? वह पुण्य-पाप को कैसे जान पाएगा ? 101. कर्म ण कम्मुणा कम्म खवेंति बाला ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 557]
- सूत्रकृतांग 10245 अज्ञानी मनुष्य कर्म (पापानुष्ठान) से कर्म का नाश नहीं कर पाते। 102. संतोषी संतोसिणो णोपकरेंति पावं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 557]
- सूत्रकृतांग 10245 संतोषी साधक कभी कोई पाप नहीं करते। 103. लोभ-भय मुक्त मेधाविणो लोभ भयावतीता ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 557]
- सूत्रकृतांग 12ns ज्ञानी लोभ और भय से सदा मुक्त होते हैं ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3.81.