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96. पठित मूर्ख
शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खाः, यस्तु क्रियावान् पुरूषः स विद्वान् । संचिंत्यतामातुरमौषधं हि, न ज्ञानमात्रेण करोत्यरोगम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 554]
- हितोपदेश 1467 पुरुष शास्त्रों को पढ़कर भी मूर्ख ही रह जाते हैं । वास्तव में जो पुरुष कर्म करता है, वह विद्वान है। अच्छी तरह से सोचकर की गई औषध के नामोच्चारण मात्र से रोगी का रोग नष्ट नहीं होता है। 97. क्रिया ही फलदायिनी
क्रियैव फलदा पुंसां, न ज्ञानं फलदं मतम् । यतः स्त्री-भक्ष्य भोगज्ञो, न ज्ञानात् सुखभाग् भवेत् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 554]
- नयोपदेश सटीक 129 वास्तवमें क्रिया ही फल देने वाली हैं, ज्ञान नहीं; क्योंकि स्त्री, भोजन और भोग का जानकार भी मात्र ज्ञान से सुखी नहीं होता, उसे क्रिया करनी ही पड़ती है। 98. काल दुरतिक्रम
कालः पचति भूतानि, कालः संहरति प्रजाः । कालः सुप्तेषु जार्गति, कालोहि दुरतिक्रमः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 555]
- चाणक्य नीतिदर्पणः (चाणक्यशास्त्र) 6n काल ही प्राणियों को खाता है । काल ही प्राणियों का संहार करता है। सब सो जाने पर भी वह जागता रहता है । काल का अतिक्रमण करना बड़ा दुष्कर है।
. अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 0 80