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________________ BARD - निश्चत रूप से ज्ञानी संसार का अन्त कर देते हैं । 109. अवश्यमेव प्राप्तव्य शुभाशुभ फल अस्सि च लोए अदुवा परत्था, सतग्गसो वा तह अन्नहा वा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 558 ] सूत्रकृतांग 1/12/16 श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 608 ] सूत्रकृतांग 1/7/4 कृत कर्म इस जन्म में अथवा अगले जन्म में जिस तरह भी किए गए हों, वे उसी तरह से अथवा अन्य प्रकार से कर्ता को अपना फल अवश्य देते हैं । 110. जीव कर्मबंधकर्ता - भोक्ता संसारमावन्न परं परं ते, बंधंति वेयंति च दुण्णियाई । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 608 ] सूत्रकृतांग 1/7/A संसार चक्र में परिभ्रमण करता हुआ जीव अपने दुष्कृत्यों के कारण सतत नूतन कर्म बांधता है तथा उसका फल भोगता है । 111. मरण-शरण S बहुकूर कम्मे, जं कुव्वती मिज्जति तेण बाले । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 608 ] सूत्रकृतांग 1/7B अति क्रूर कर्मा अज्ञानी जीव बार-बार जन्म लेकर जो कर्म करता है, उसीसे मरण-शरण हो जाता है । 112. स्वकर्म फल - सक्कम्मुणा विप्परियासुवेति । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 610 ] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड - 3 • 83
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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