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- भगवती सूत्र 1ANI/(6) गर्दा (आत्मालोचन) संयम है, अगर्दा संयम नहीं है। आत्मा ही सामायिक आयाणे अज्जो ! सामाइए,
आयाणे अज्जो ! सामाइयस्स अट्टे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 497]
- भगवतीसूत्र 12/21/(4) हे आर्य ! आत्मा ही सामायिक (समत्वभाव) है और आत्मा ही सामायिक का अर्थ (विशुद्धि) है। 83. उत्तम पुरुष वैडूर्यरत्नवत्
सुचिरंपि अच्छमाणो, वेलिओ कायमणि य ओमीसो। न उवेइ कायभावं पाहन्न गुणेण नियए ण ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 517-613]
- ओघनियुक्ति 772 वैडूर्यरत्न काँच की मणियों में कितने ही लम्बे समय तक क्यों न मिला रहे, वह अपने श्रेष्ठ गुणों के कारण रत्न ही रहता है, कभी काँच नहीं होता । (सदाचारी उत्तम पुरुष का जीवन भी ऐसा ही होता है।) 84. संग का रंग
जह नाम महुर सलिलं, सायर सलिलं कमेण संपत्तं । पावेइ लोणभावं, मेलण दोसाणु भावेणं ॥ एवं खु सीलवंतो, असील वंतेहि मीलिओ संतो । पावइ गुण परिहाणि, मेलण दोसाणु भावेणं ।।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 518]
- आवश्यक नियुक्ति 31133 -1134 जिस प्रकार मधुर जल, समुद्र के खारे जल के साथ मिलने पर खारा हो जाता है, उसी प्रकार सदाचारी पुरुष दुराचारियों के संसर्ग में रहने के कारण दुराचार से दूषित हो जाता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 76