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________________ 85. जिनशासन-मूल विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो को तवो ? - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 523] . - विशेषावश्यक भाष्य 3468 विनय जिनशासन का मूल है । विनीत ही संयमी हो सकता है। जो विनय से हीन है, उसका क्या धर्म और क्या तप ? 86. विनयानुशासन जम्हा विणयइ कम्म, अट्टविहं चाउरंत मोवखाय । तम्हा उ वयंति विओ, विणयंति विलीन संसारा ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 523] - स्थानांगटीका 6/331 एवं आवश्यक नियुक्ति 867 जिससे आठ प्रकार के कर्म दूर होते हैं, चारों गतियों एवं संसार का विलय होता है, उसे 'विनय' कहते हैं । 87. नमस्कार आते जाते जह दूओ रायाणं, णमिउं कज्जं निवेइडं पच्छा । वीसज्जिओ वि वंदिय, गच्छइ साहूवि इमेव ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 525] - आवश्यक नियुक्ति 34243 (13) दूत जिस प्रकार राजा आदि के समक्ष निवेदन करने से पहले भी और पीछे भी नमस्कार करता है, वैसे ही शिष्य को भी गुरुजनों के समक्ष जाते और आते समय नमस्कार करना चाहिए। 88. कर्म-क्षय साहु खवंति कम्मं, अणेगभवसंचियमणंतं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 525] - आवश्यक नियुक्ति 34244-1431 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 77
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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