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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 418]
- अंगचूलिका 5 अ. विनय धर्म का मूल है। 78. कायोत्सर्ग से विशुद्धि काउस्सग्गेणं तीय पडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 428]
- उत्तराध्ययन 29011404 कायोत्सर्ग से जीव अतीत और वर्तमान के अतिचारों की विशुद्धि करता है। 79. प्रायश्चित्त से हल्कापन
विशुद्ध पायच्छित्तेयजीवे निवुयहियए ओहरिय भरूव्व। भारवेह पसत्थज्झाणोवगए सुहं सुहेणं विहरड् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 428]
- उत्तराध्ययन 2914 विशुद्ध प्रायश्चित्त कर यह जीव सिर पर से भार के उतर जाने से एक भारवाहकवत् हल्का होकर सद्ध्यान में रमण करता हुआ सुखपूर्वक विचरता है। 80. काया-नियन्त्रण
संरंभ समारंभे, आरंभे य तहेव य । वई यं (वयं) पवत्तमाणं त्तु, नियंटेज्ज जयं जई ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 449]
- उत्तराध्ययन 24/23 यतनाशील यति संरंभ, समारंभ और आरंभ में प्रवृत्त होती हुई वाणी का नियन्त्रण करें। 81. संयमासंयम गरहा संजमे, नो अगरहा संजमे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 497] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 75