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60. क्रोध का फल कोहो पीइं पणासेइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवैकालिक 8/37 क्रोध प्रीति का नाश करता है। 61. विनयनाशक माणो विणय नासणो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवैकालिक 837 मान विनय का नाश करता है। 62. मित्रतानाशक
माया मित्ताणि नासेइ। __- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- - दशवकालिक 8/37 माया मित्रता का नाश करती है। 63. सर्वनाशक लोभो सव्व विणासणो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवैकालिक 837 लोभ सभी सदगुणों का विनाश कर डालता है। मानजय - प्रक्रिया माणं मद्दवया जिणे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवकालिक 8/38 अभिमान को मृदुता – नम्रता से जीतना चाहिए ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 71