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________________ 56. धर्म है सन्तजनों का शणगार धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 392] उत्तराध्ययन 8/19 धर्म को अत्यन्त कल्याणकारी- मनोज्ञ जानकर भिक्षु उसीमें अपनी आत्मा को संलग्न कर दें । 57. नरक द्वार है अहंकार सेलथंभ समाणं माणं अणुपविट्ठे जीवे । कालं करेइ रति एसु उववज्जति ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 396] स्थानांग 4/4/2/293 (2) पत्थर के खंभे के समान जीवन में कभी नहीं झुकनेवाला अहंकार आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है । 58. दंभ - वंसीमूलकेतणा समाणं मायं अणुपविट्टे जीवे । कालं करेति णेरइएस उववज्जति ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 396] स्थानांग 4/4/2/293 (1) बाँस की जड़ के समान अतिनिबिड़ - गाँठदार दंभ (कपट) आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है । 59. लोभ, रंगमजीठ - किमिरागरत्तवत्थ समाणं लोभमणुपविट्टे जीवे । कालं करेति रइएस उववज्जति ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 396] स्थानांग 4/4/2/293 ( 3 ) मजीठ के रंग के समान जीवन में कभी नहीं छूटनेवाला लोभ आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है । अभिधान राजेन्द्र कोप में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 3 • 70 - B
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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