SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह आत्मा जनाध्ययधान राजेन्द्र को - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 390] - उत्तराध्ययन 81 __मुनि रसलोलुप न बने। 52. तृष्णाः दूष्पूर्णा दुप्पूरए इमे आया। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 391] - उत्तराध्ययन 806 यह आत्मस्थित तृष्णा कठिनाई से भरी जानेवाली है। 53. बोधि-दुर्लभ बहु कम्मलेवलिताणं, बोही होई सुदुल्लहा तेसिं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 391] - उत्तराध्ययन 845 जो आत्माएँ बहुत अधिक कर्मों से लिप्त हैं, उन्हें बोधि प्राप्त होना अति दुर्लभ है। 54. दुष्पूरातृष्णा कसिणंपि जो इमं लोयं, पडिपुन्नं दलेज्ज एक्कस्स । तेणावि से ण संतुस्से, इइ दुप्पूरए इमे आया ॥ . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 391] - उत्तराध्ययन 806 धन-धान्य से भरा हुआ यह समग्र विश्व भी यदि लोभी व्यक्ति को दे दिया जाय, तब भी वह उससे सन्तुष्ट नहीं हो सकता । इस प्रकार . आत्मा की यह तृष्णा बड़ी दूष्पूरा (पूर्ण होना कठिन) है। 55. कामासक्त ' ते कामभोग रस गिद्धा, उववज्जंति आसुरे काए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 391] - उत्तराध्ययन :M4 जो साधक काम-भोग के रस में आसक्त हो जाते हैं, वे असुर जातिवाले निम्न श्रेणी के देवों में उत्पन्न होते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 69
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy