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47. अलिप्त साधक सव्वेसु काम जाएसु, पासमाणो न लिप्पई ताई।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 389]
- उत्तराध्ययन 8/4 सभी काम-भोगों में दोष देखता हुआ आत्मरक्षक साधक उनमें कभी लिप्त नहीं होता। 48. हिंसा से सर्वथाविरत
जगनिस्सिएहि भूएहि, तस नामेहि थावरेहिं च । नो तेसिं आरभे दंडं, मणसा वयसा कायसा चेव ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 390]
- उत्तराध्ययन 800 लोकाश्रित जो भी त्रस और स्थावर जीव हैं, उनके प्रति मन-वचन और काया – किसी भी प्रकार से दण्ड का प्रयोग न करें । 49. प्राणवध अनुमोदी
नहुपाणवहंअणुजाणे, मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 390]
- उत्तराध्ययन 8/8 प्राणवध का अनुमोदन करनेवाला पुरुष कदापि सर्वदुःखों से मुक्त नहीं हो सकता। 50. आहार की अनासक्ति जायाए घासमेसेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 390]
- उत्तराध्ययन 8.1 साधक जीवन-निर्वाह के लिए खाए। 51. रस-अलोलुप
रस गिद्धे न सिया भिक्खाए ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3.68