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43.
दुर्गति रक्षण - जिज्ञासा
अधुवे असासयम्मी, संसारम्मि दुक्ख पउराए । किं नाम होज्ज तं कम्मगं, जेणाहं दोग्गइं न गच्छेज्जा ? श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 388]
उत्तराध्ययन 81
इस अध्रुव, अशाश्वत और दुःखमय संसार में ऐसा कौन-सा कर्म है ? कौन-सा क्रियानुष्ठान है जिसे अपना कर जीव दुर्गति में जाने से बच सके ?
44. कामदुस्त्याज्य
दुपरिच्चया इमे कामा, नो सुजहा अधीर पुरिसेहिं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 389 ]
उत्तराध्ययन 86
काम-भोगों का त्याग करना अत्यन्त कठिन हैं । अधीर I पुरुष तो इन्हें आसानी से छोड़ ही नहीं सकते ।
45. पापदृष्टिः नरक - हेतु
मंदा निरयं गच्छंति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 389]
उत्तराध्ययन 8/7
मन्द बुद्धिवाले तथा अज्ञानी पुरुष अपनी पापमयी दृष्टि के कारण ही नरक में जाते हैं ।
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46. अज्ञ - श्लेष्म की मक्खी
बाले य मंदिए मूढे, वज्झई मच्छिया वेलम्म ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 389]
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उत्तराध्ययन 8/5
अज्ञानी और मंदमति मूढ़ जीव संसार में उसी प्रकार फंस जाते हैं,
जैसे श्लेष्म - कफ में मक्खी ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 67