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65. दम्भ-विजय विधि मायं चऽज्जव भावेण ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवकालिक 8/38 माया को सरलता से जीतना चाहिए। 66. क्रोध-विजय उवसमेण हणे कोहं।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवकालिक 8/38 क्रोध को शांति से समाप्त करें। 67. लोभ-विजय लोभं संतोसओ जिणे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवैकालिक 8/38 लोभ को सन्तोष से जीतना चाहिए । 68. दोष-परित्याग
कोहं माणं च मायं च, लोभं च पाववड्ढणं । वमे चत्तारि दोसेउ, इच्छंतो हियमप्पणो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 399]
- दशवकालिक 8/36 क्रोध, मान, माया और लोभ - ये चारों पाप की वृद्धि करनेवाले हैं; अत: आत्मा का हित चाहनेवाला साधक इन दोषों का परित्याग कर दें। 69. कषाय चतुष्क
कोहो य माणो य अणिग्गहीया, माया य लोभो य पवड्ढमाणा ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 72