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________________ अज्ञानी साधक उस जन्मान्ध व्यक्ति के समान है, जो सछिद्र नौका पर चढ़कर नदी किनारे पहुँचना तो चाहता है, किन्तु किनारा आने से पहले ही बीच प्रवाह में डूब जाता है । 27. शुभाशुभ कर्म शुभाशुभानि कर्माणि, स्वयं कुर्वन्ति देहिनः । स्वयमेवोपभुज्यंते, दुःखानि च सुखानि च ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 334 ] उत्तराध्ययन सूत्र सटीक 1 अ. प्राणी स्वयं शुभाशुभ कर्म का कर्ता है और स्वयं ही सुख-दुःख का भोक्ता है । 28. विघ्न श्रेयांसि बहुविघ्नानि भवन्ति महतामपि । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 338 ] विशेषावश्यक भाष्य बृहद्वृत्ति पृ. 17 महापुरुषों को भी शुभकार्य में अनेक विघ्न-बाधाएँ आती हैं । - - 29. कामभोगासक्त मानव सत्ता कामेहिं माणवा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342 ] आचारांग 161/180 मनुष्य काम-भोगों में आसक्त होते हैं । 30. दुःखरूप संसार पास ! लोए महब्भय । FAED श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342 ] आचारांग 16/180 देखो ! यह संसार महाभयवाला है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 63
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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