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________________ 31. बालधृष्ट अट्टे से बहु दुक्खे इति बाले पकुव्वति ( पगब्भइ ) । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342] आचारांग 1/61/180 1 वेदना से पीड़ित मनुष्य बहुत दु:ख पाता है, इसलिए वह बाल [अज्ञानी] प्राणियों को क्लेश पहुँचाता हुआ धृष्ट (बेदर्द) हो जाता है । 32. भावान्धकार संति पाणा अंधा मंसि वियाहिता । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342] आचारांग 1/61/180 अंधकार में होनेवाले प्राणी अंधे कहे गए हैं। 33. देह पोषण के लिए वध त्याज्य अबलेण वहं गच्छंत सरीरेण पभंगुरेण । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342] आचारांग 161180 इस नि:सार क्षणभंगुर देह के पोषण के लिए मनुष्य अन्य जीवों www - के वध की इच्छा करते हैं । 34. संसारी जीव दुःखी बहुदुक्खा हुical | M श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342] आचारांग 1/6/180 संसारी जीव निश्चय ही बहुत दुःखी है । 35. कर्मानुसार फल सव्वो पुव्वकयाणं कम्माणं पावए फल विवागं । अवराहेसु गुणेसु य, णिमित्त मित्तं परो होइ ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 342 ] सूत्रकृतांग 1/12 G अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड - 3 • 64
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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