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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 222] - बृहत्कल्पवृत्ति सभाष्य 1 उद्देश जैसे तैसे व्यक्ति को उपदेश नहीं देना चाहिए। देखो ! मूर्ख बन्दर ने अच्छे घरवाले को घरविहीन बना दिया। 23. वसुंधरा वसुंधरेयं जह वीर भोज्जा। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 222] - बृहदावश्यक भाष्य 3254 यह वसुन्धरा वीरभोग्या है। 24. निर्वाण-प्राप्ति एवं भाव विसोहीए णेव्वाण मभिगच्छती । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 331] - सूत्रकृतांग 12/27 भावों की विशुद्धि से निर्वाण प्राप्त करता है। 25. मिथ्यादृष्टि जीव एवं तु समणा एगे, मिच्छट्ठिी अणारिया। संसार पारकंखी ते, संसारं अणुपरिखंति तिबेमि ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 332] - सूत्रकृतांग 1AN/32 कई मिथ्यादृष्टि, अनार्य श्रमण संसार सागर से पार जाना चाहते हैं, लेकिन वे संसार में ही बार-बार पर्यटन करते रहते हैं। 26. अज्ञानी साधक जहा आसाविणिं णावं जाति अंधो दुरूहिया । इच्छेज्जा पारमार्गहुं अंतरा य विसीयती ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 332] - सूत्रकृतांग 1ABI अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 62
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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