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________________ अंधो का: श्री अभियान 23253 18. दुःख-निरोध समुप्पाद मयाणंता, किह नाहिति संवरं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 205] - सूत्रकृतांग 1000 जो दु:खोत्पत्ति का कारण ही नहीं जानते, वह उसके निरोध का कारण कैसे जान पायेंगे ? 19. अधर्म से दुःखोत्पत्ति अमणुण्ण समुप्पादं दुक्खमेव वियाणिया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 205] - सूत्रकृतांग 1A0 अशुभ अनुष्ठान अर्थात् अधर्माचरण से दु:ख की उत्पत्ति होती है। 20. कहाँ अँध, कहाँ दर्शक ! अंधो कहिं कत्थ य देसियव्वं । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 222] - बृहत्कल्प भाष्य 3253 .. कहाँ अँधा और कहाँ पथप्रदर्शक ? (अँधा और मार्गदर्शक, यह कैसा मेल ?) 21. स्वच्छंदता कुलं विणासेइ सयं पयाता, न दीव कूलं कुलडाउनारी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 222] - बहू भाष्य 3251 स्वच्छंदाचरण करनेवाली नारी अपने दोनों कुलों (पितृकुल व श्वसुरुकुल) को वैसे ही नष्ट कर देती है, जैसे कि स्वच्छन्द बहती हुई नदी अपने दोनों कूलों (तट) को। 22. उपदेश के अयोग्य उपदेशो न दातव्यो, यादृशे तादृशे जने । पश्य वानर मूर्खण, सुगृही निर्गृही कृतः ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 61 और मार्गदर्शक, यः
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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