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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1150] - उत्तराध्ययन 29/63 चारित्र की संपन्नता से जीव शैलेशी-भाव अर्थात् चौदहवें गुणस्थान की अडोल स्थिति को प्राप्त करता है। 271. निवद्य वक्ता कुसलवति उदीरतो, ज वइ गुत्तोवि समिओवि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1150] - निशीथ भाष्य 37 - बृहदावश्यक भाष्य 4451 कुशल वचन (निरवद्य वचन) बोलनेवाला वचन समिति का भी पालन करता है और वचन गुप्ति का भी। 272. त्यागी कौन नहीं ? अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइ त्ति वुच्चइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1167] - दशवैकालिक 22 जो पराधीनता के कारण विषयों का उपभोग नहीं कर पाते, उन्हें त्यागी नहीं कहा जा सकता। 273. सच्चा त्यागी जे य कंते पिए भोए, लद्धे विप्पिट्टी कुब्वइ । साहीणे चयई भोए, से हु चाइ त्ति वुच्चइ ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1167] - दशवकालिक 2/3 जो मनोहर और प्रिय भोगों के उपलब्ध होने पर भी स्वाधीनतापूर्वक उन्हें पीठ दिखा देता है, वस्तुत: वही त्यागी है। 274. अनन्त गुण दीप्त साधु वस्तुतस्तु गुणैः पूर्णमनन्तैर्भासते स्वतः । रूपं त्यक्तात्मनः साधोर्निरभ्रस्य विधोरिव ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 0 122
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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