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- उत्तराध्ययन 28/30 सम्यग्ज्ञान के बिना जीवन में चारित्र नहीं हो सकता। 266. दर्शन बिन ज्ञान नहीं ! नादंसणिस्स नाणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1128]
- उत्तराध्ययन 28/30 सम्यग्दर्शन से रहित को सम्यकज्ञान नहीं होता है । 267. पाप कर्म प्रवर्तक राग-दोसे च दो पावे, पावकम्म - पवत्तणे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1128]
- उत्तराध्ययन 313 राग-द्वेष ये दोनों पाप कर्मों के प्रवर्तक होने से पाप रूप है । 268. मुक्ति – मूल तस्मात् चारित्रमेव प्रधानं मुक्ति कारणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1143] . - आवश्यकबृहवृत्ति 3 अध्ययन __ चारित्र ही मुक्ति का प्रधान कारण है । 269. त्रिरत्न
नाणेण होइ करणं, करणं नाणेण फासियं होइ । दुण्डंपि समाओगे, होइ विसोही चरित्तस्स ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1145]
- दसपयन्ना 79 ज्ञान से क्रिया होती है, क्रिया से ज्ञान का स्पर्श होता है और दोनों के समाविष्ट होने पर चारित्र की विशुद्धि होती है। 270. शैलेशी भाव प्राप्ति
चरित्त संपन्नयाएणं सेलेसी भावं जणयइ ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 121