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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1057]
- आवश्यक नियुक्ति 21089 क्रोध, मान, माया और लोभ पर विजय पा लेने के कारण 'जिन' कहलाते हैं । कर्म रूपी शत्रुओं का तथा कर्म रूपी रज का हनन करने के कारण 'अरिहंत' कहे जाते हैं। 257. परमात्मा से याचना
आरूग्ग बोहिलाभं समाहिलाभं समाहिवरमुत्तमं च मे दितुं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1058]
- आवश्यक नियुक्ति 24107 मुझे आरोग्य, सम्यक्त्व तथा समाधि को प्रदान करो। 258. रूप-आसक्ति
चक्खिदिय दुईत - त्तणस्सं अह एत्तिओ भवति दोसो। - जं जलणम्मि जलंते, पडति पयंगो अबुद्धिओ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1106]
- ज्ञाताधर्मकथा 147/36 . चक्षुरिन्द्रिय की आसक्ति का इतना बुरा परिणाम होता है कि मूर्ख पतंगा जलती हुई आग में गिरकर मर जाता है । 259. मोक्ष का मूल . नाण किरियाहिँ मोक्खो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1126 ]
- विशेषावश्यक भाष्य 3 ज्ञान और क्रिया से ही मुक्ति मिलती है। 260. जलयान और हवा वाएण विणा पोओ, न चएइ महण्णवं तरिउं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1127] - आवश्यक नियुक्ति 105
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 119