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________________ बहुत से लोग न्याय युक्त कल्याणमार्ग की बात सुनकर भी श्रद्धा से परिभ्रष्ट हो जाते हैं। 252. धर्मश्रवण अति दुर्लभ माणुस्सं विग्गहं लद्धं, सुई धम्मस्स दुल्लहा । जं सोच्चा पडिवज्जंति, तवं खंतिमहिंसयं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1053] - उत्तराध्ययन 318 मानव देह पाकर भी सद्धर्म का श्रवण अति-दुर्लभ है, जिसे सुनकर मनुष्य तप, क्षमा और अहिंसा को स्वीकार करते हैं । 253. दुर्लभ क्या ? सुई धम्मस्स दुल्लहा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1053] - उत्तराध्ययन 3/8 धर्म श्रवण बहुत दुर्लभ है। 254. यश - संचय जसं संचिण खंतिए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1054] - उत्तराध्ययन 343 क्षमा से यश का संचय करो। 255. कर्म-हेतु विगिंच कम्मणो हेडं। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1054] - उत्तराध्ययन 303 कर्म के हेतु को छोड़। 256. जिन एवं अरिहंत जिय कोह माण माया, जिय लोहा तेण ते जिणा हुति अरिणो हंता रयं हंता, अरिहंता तेण वुच्चंति ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 118
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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