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247. दुर्लभ श्रद्धा सद्धा परम दुल्लहा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1053]
- उत्तराध्ययन 30 धर्म में श्रद्धा होना परम दुर्लभ है । 248. मोक्ष निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्ते वपावए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1053]
- उत्तराध्ययन 302 घृत से अभिसिंचित अग्नि जिसप्रकार पूर्ण प्रकाश को पाती है, उसीप्रकार सरल एवं शुद्ध हृदय साधक ही पूर्ण निर्वाण-मोक्ष को पाता है। 249. धर्माचरण-दुर्लभ वीरियं पुण दुल्लहं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1053]
- उत्तराध्ययन 300 धर्म का आचरण करना और भी दुर्लभ है। 250. संयम में पुरूषार्थ कठिन
सुई च लद्धं सद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणावि, नो यणं पडिवज्जई ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1053]
- उत्तराध्ययन 310 धर्म श्रवण और श्रद्धा प्राप्त होने पर भी संयम मार्ग में पुरुषार्थ प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। बहुत से लोग श्रद्धा सम्पन्न होते हुए भी संयम मार्ग में प्रवृत्त नहीं होते। 251. श्रद्धा-परिभ्रष्ट सोच्चा णेयाउयं मग्गं बहवे परिभस्सई ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1053] - उत्तराध्ययन 30
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 117