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________________ 234. निर्दोष ग्राह्य पडिगाहेज्ज कप्पियं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 989] - दशवकालिक 527 निर्दोष वस्तु ग्रहण करो ! 235. अकल्प्य अकप्पियं न गेण्हेज्जा। .. - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 989] - दशवकालिक 5427 सदोष (अकल्प्य) वस्तु ग्रहण मत करो। 236. परिहरु कुवच कठोर नो य णं फरूसं वए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 990] - दशवकालिक 5229 कठोर वचन मत बोलो। 237. अनपेक्षा जे न वंदे न से कुप्पे वंदिओ न समुक्कसे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 990] - दशवैकालिक 5230 श्रमण वन्दन-स्तुति नहीं करने पर क्रोध न करे और करने पर अहंभाव न लाए। 238. वंदन समय याचना वर्जन वंदमाणं न जाएज्जा। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 990] - दशवकालिक 5229 कोई वन्दन कर रहा हो तो श्रमण उससे किसी प्रकार की याचना न करें। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 114
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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