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________________ ब्रह्मचारी वेश्यालयों के निकट होकर आवागमन न करे । 229. शंकास्पद त्याग संकटाणं विवज्जए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 983] - दशवैकालिक 5405 शंका के स्थानों को छोड़ दो। 230. देखो, चलो ! दवदवस्स न गच्छेज्जा। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 983] - दशवकालिक SAN4 मार्ग में जल्दी - जल्दी ताबड़-तोबड़ नहीं चलना चाहिए। 231. चलो ! हँसते नहीं ! हंसतो नाभिगच्छेज्जा। . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 983] - दशवैकालिक 5MM4 रास्ते में हँसते हुए नहीं चलना चाहिए। 232. क्ले श से दूर संकिलेसकरं ठाणं, दूरओ परिवज्जए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 983] - दशवकालिक 5006 जिस स्थान पर क्लेश की संभावना हो, उस स्थान से दूर रहना चाहिए। 233. कठोर वचन-त्याग नो व णं फरूसं वदेज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 986] - आचारांग 240/6 साधक को चाहिए कि वह कठोर भाषा का प्रयोग नहीं करे । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3. 113 )
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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