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________________ यदि दाता न दे, तथापि उस पर कुपित न हो। 225. भिक्षाचरी में न दैन्य न कोप बहुं परघरे अस्थि, विविहं खाइम साइमं । न तत्थ पंडिओ कुप्ये, इच्छा देज्ज परो न वा ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 981] - दशवकालिक 52.27 गृहस्थ के घर में अनेक प्रकार के बहुत से खाद्य-स्वाद्य पदार्थ होते हैं। यदि गृहस्थ मुनि को न दें तो भी वह बुद्धिमान् साधु उस पर कोप न करे किन्तु ऐसा विचार करे कि वह गृहस्थ है, दे या न दे! यह उसकी इच्छा पर निर्भर है। 226. भिक्षाचरी संहिता न चरेज्जवासे वासंते, महियाए पडंतिए । महावाए व वायंते, तिरिच्छ संपाइमेसु वा ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 982] - दशवकालिक 5AR बारिस हो रही हो, कुहरा छा रहा हो, आँधी चल रही हो और मार्ग में जीव-जन्तु उड़ रहे हों; ऐसी स्थिति में साधु भिक्षा के लिए अपने स्थान से बाहर न निकले। 227. कलह से दूर कलहं जुद्धं, दूरओ परिवज्जए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 982] - दशवैकालिक SAn2 जहाँ कलह हो रहा हो, युद्ध मच रहा हो, वहाँ साधु-पुरुष को नहीं जाना चाहिए बल्कि दूर से ही उसे छोड़ देना चाहिए। 228. ब्रह्मचारी-गमनागमन निषेध न चरेज्ज वेस सामंते । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 982] - दशवकालिक 5AR अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 112
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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